भारतीय समाज मानता है कि पुरुषों का रोना शोभनीय नहीं है। लेकिन 28 जनवरी शाम को गाजीपुर बॉर्डर पर क्या हुआ। आधुनिक किसानों के अव्वल नेता ने जब अपनी हार ही नहीं, अपने किसानों का भविष्य गर्त में जाता देखकर कुछ क्षणों के लिए कुछ बुँदे जो उनके आंखे से झलके, वो किसानी से जुड़े हर युवा और बुजुर्ग के दिल पर जा लगी। उन्हें मालूम पड़ गया, आज उनके नेता रो रहा है।
अगर उन्होंने त्वरित एक्शन नहीं लिया तो कल उनकी बारी है। अब ये लड़ाई किसी कानून के खिलाफ छोड़कर अब आन-बान शान की लड़ाई हो चुकी है। फिर क्या गाँव, क्या शहर हर कोई गाजीपुर बॉर्डर पर खींचता चला आया।
ऐसे है राकेश टिकैत। आज शायद ही कोई ऐसा नेता हो, जिनके आँखें से कुछ बुँदे छलक़ने मात्र से एक घंटे में हरियाणा जाग जाए, दो घंटे में लोग मुजफ्फरनगर से सीधे अमृत जल लेकर पहुँच जाए, सिसौली में रातो-रात पंचायत लग जाए और जो गाजीपुर बॉर्डर खाली होने के कगार पर था, वो लाखों लोगों के जोश और उद्घोष से गुलजार हो गया।
अनुक्रम
Rakesh Tikait Wiki

Parents
राकेश टिकैत का जन्म 4 जून 1969 को मुजफ्फरनगर के सिसौली गाँव (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे किसानों के प्रभावशाली और भारतीय किसान यूनियन के कॉ-फाउंडर रहे स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के छोटे पुत्र है। उनके बड़े भाई नरेश टिकैत है, जो बीकेयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष है।
इसके अलावा राकेश टिकैत के दो और छोटे भाई है। सुरेन्द्र टिकैत, जो शुगर मिल में मैनेजर का काम करते है और सबसे छोटे भाई नरेंद्र टिकैत खेती का काम करते है।
Education
राकेश टिकैत की प्रारम्भिक शिक्षा अपने शहर में हुई और MA उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से की। उसके बाद उन्होंने LLB भी किया।
Career
पढ़ाई करने के बाद वे 1985 में दिल्ली पुलिस में शामिल हो गए, जहां वे शुरुआती दिनों में कांस्टेबल रहे और अच्छे परफॉर्मेंस के चलते वे सब इंस्पेक्टर बन गए।
भारतीय किसान यूनियन
1992 के दौरान उनके पिता महेंद्र टिकैत के द्वारा दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव हेतु आंदोलन चलाया जा रहा था। वही पर वे अपनी पुलिस ड्यूटी निभा रहे थे। तब सरकार द्वारा उनपर दवाब बनाया कि वे अपने पिता को आंदोलन खत्म करने के लिए समझाये।
शायद ये बातों उन्हें खर कर गई और उन्होंने 1993 में पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। वे सक्रिय रूप से अपने पिता के साथ किसानों के लिए काम करने लगे और 1997 में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बन गए।
जब बॉन कैंसर से 75 वर्ष की आयु में उनके पिता की मृत्यु 15 मई 2011 को हुई, उससे ठीक पहले दिवंगत महेंद्र टिकैत खाप बलियान के नियम के मुताबिक अपने बड़े बेटे नरेश टिकैत को पगड़ी सौंप दिये। जिससे रमेश टिकैत BKU के प्रेसिडेंट नहीं बन पाये। लेकिन आज उनकी ख्याति बड़े भाई से भी बढ़कर है।
किसानी लड़ाई
राकेश टिकैत किसानों की खातिर लड़ते हुए 44 बार जेल जा चुके है। वे केवल उत्तर प्रदेश में ही सक्रिय नहीं है। बल्कि मध्यप्रदेश में किसानों की भूमि अधिकरण कानून हो या दिल्ली में लोकसभ के आगे गन्ना का दाम बढ़ाने को लेकर प्रदर्शन या राजस्थान में बाजरे का दाम बढ़ाने की मांग हो।
सबमें उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और एमपी जेल, तिहाड़ जेल गए व जयपुर जेल गए।
सियासत में आने की कोशिश
2014 में वे राष्ट्रिय लोक दल के अमरोहा टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, पर केवल 9000 वोट ही पा सके। फिर वे 2019 को निर्दलीय रूप से लोकसभा चुनाव लड़े। परिणाम पुराना ही रहा।
Farm Bill Act
26 नवंबर 2020 को दिल्ली बॉर्डर (गाजीपुर, सिंधु, टिकरी बॉर्डर) पर शुरू हुए किसान बिल कानून के खिलाफ आंदोलन में शुरू दिन से उनकी भागीदारी खूब रही। खासकर वे गाजीपुर बॉर्डर पर वे अपनी नेतृत्व की भूमिका निभाते है।
जिनकी जादूमयी नेतृत्व ने 28 जनवरी 2021 को लगभग खत्म हो चुकी आंदोलन को फिर से जिंदा कर दिया। जिसके बाद लोगों ने पहली बार ऐसा नेता देखा, जिसके एक भावुक पुकार से रातों-रात लोगों को जमावड़ा लग गया और रौंदी हुई बग्गियाँ खिल-खिल्ला उठी।
28 जनवरी 2021 की बाजीगर रात
याद करो 28 जनवरी की शाम को तथाकथित मीडिया द्वारा लाल किले की आधी तस्वीर दिखाकर देशद्रोही कहा जा रहा था, पानी-बिजली काट दी गई, यहाँ तक की portable शौचालय तक हटा दिया गया। हजारों पुलिस उनके मंच के सामने फ्लेगमार्च कर रही थी। इस भयावह तस्वीर को देखकर बहुत से आंदोलनकर्ता के हिम्मत ने जवाब दे दिया और वे लौट गए।
फिर गाजीपुर बॉर्डर समान जहाज की कैप्टन राकेश टिकैत भी गिरफ्तारी के लिए तैयार हो गए। लेकिन तभी उन्हें हाथों में लाठी-हथियार लिये मानव रूपी कई खतरनाक शार्क दिखे, जो उनके चले जाने के बाद जहाज पर सवार बाकी यात्रियों के लिए काल साबित हो सकती थी।
बस इस पल ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। फिर उन्होंने डूबते जहाज के कैप्टन धर्म निभाने का निर्णय लिया।
जहाज डूबती जा रही थी, पितामय आँसू झलकती जा रही थी। वह पत्थर दिल ही होगा, जो अपने संतानों को डूबते देख रोये ना। बस यह हृदयविदारक दृश्य जमीन से जुड़े हर व्यक्ति के दिल पर जा लगी। कई मर्द तो रो गए।
तथाकथित मीडिया उस व्यक्ति की आंसूयों का मज़ाक उड़ा रही थी, जो अब हमारे भाई, ताऊ, चाचा, पिता समान लगने लगे है, क्योंकि दो महीने से जो वो लड़ाई लड़ रहे है। वो पहली नजर में लगेगा कि वो खुद के लिए लड़ रहे है। पर अगर आप गंभीरता से सोचेंगे तो वे अप्रत्यक्ष रूप से हमारे थाली में सस्ते दामों पर पहुँचने वाले दाने-दाने के लिए लड़ रहे है।
याद करिए, कुछ साल पहले एक नया टेलीकॉम कंपनी आया, जिसका सिम आपके पास भी होगा, मेरे पास भी है। उसने एक साल तक फ्री सर्विस का लोलिपोप दिया। बदले में आधा दर्जन टेलीकॉम कंपनी को बंद हो गया, जिससे लाखों बेरोजगार हो गए।
कभी फ्री सर्विस देने वाला वो कंपनी टेलीकॉम सेक्टर का भाग्यविधाता बन चुका है। वो दाम बढ़ाता है तो बाकी कंपनी बढ़ाती है। मार्केट से कॉम्पटिशन ही खत्म कर दिया, जो ग्राहकों के लिए सही नहीं है।
ऐसा ही अगर आपके थाली के अनाज के साथ होये तो क्या होगा? याद रखिए प्राइवेट कंपनी सिर्फ लाभ के लिए काम करती है। यकीन नहीं है तो एक किलो गेहूं गाँव से खरीदिए और एक किलों गेहूं किसी मॉल से खरीदिए। कुछ अंतर मिला।
जबकि आपको गाँव में सबसे फ्रेश व ताजा गेहूं मिलेगा। So अब ये आंदोलन अब किसानों का नहीं रहा, हर भारतीय की पेट से जुड़ चुका है। अस्मिता की लड़ाई बन चुकी है। इस बात ने लोगों को कपकपाती रातों को ही आने को मजबूर किया। जिन्होंने उस कयामत की रात को सबसे बड़ी आशावादी वाली रात बना दी। धन्य है भारत और भारतीय संस्कृति।
Family & Wife
1985 में उनकी शादी बागपत जिले में पड़ने वाले दादरी गाँव की सुनीता देवी से हुई। उनके एक पुत्र चरण सिंह टिकैत और दो पुत्री सीमा और ज्योति है। सभी बच्चों की शादी हो चुकी है।