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जन्तु कथा से इंसानों को सुधारने वाले विष्णु शर्मा की कहानी

By : Editor

आज का लेख लिखते वक़्त मेरा मन ना जाने क्यों भाव विभोर हो उठा, अपने भाव को समेट और सहेज कर यह लेख आप लोगों के लिए लिख रहा हूँ। इस बात का विश्वास दिलाता हूँ, इस लेख को पढ़ कर बुजुर्ग और अधेड़ वर्ग अपने बचपन की गलियों में और अभी-अभी युवावस्था में आए बच्चे अपनी यादों में खो जायेंगे।

अरे!! जनाब, थोड़ा सा और धैर्य रखें आपको पता चल ही जाएगा मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ।

अनुक्रम

  • Pandit Vishnu Sharma Bio
    • Panchatantra Stories की उत्पति
    • पंचतन्त्र का रचनाकाल
    • पंचतन्त्र के भाग

Pandit Vishnu Sharma BioPandit Vishnu Sharma

पण्डित जी का जीवन काल बहुत ही सुखद रूप से गुजरा था। पण्डित विष्णु शर्मा राजनीति और नीतिशास्त्र के साथ सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। इनके जन्मस्थान का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है, इस वजह से इनका जन्म कहाँ हुआ था, ये कहना संभव नहीं है।

लेकिन इनकी कर्मस्थली के बारे में सारे तथ्य और साक्ष्य मिल जाते है, उन प्रमाणों के आधार पर पण्डित विष्णु शर्मा महिलारोप्य नामक एक नगर में रहते थे। यह नगर दक्षिण भारत में स्थित था।

पण्डित विष्णु शर्मा ने ही प्रसिद्ध संस्कृत नीतिपुस्तक पंचतन्त्र की रचना की थी, वो ही पंचतन्त्र जिसकी कहानियाँ हर उम्र के नौजवान ने अपनी जिंदगी में सुनी ही होंगी।

जब पण्डित विष्णु शर्मा ने पंचतन्त्र की रचना की थी, तब उनकी आयु 80 वर्ष के करीब थी।

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Panchatantra Stories की उत्पति

पंचतन्त्र की रचना पण्डित विष्णु शर्मा ने ईसा पूर्व दूसरी और तीसरी शताब्दियों के बीच की थी, लेकिन यह नीतिपुस्तक एक चुनौती के तौर पर बनी थी।

हुआ यह था कि महिलारोप्य नगर के राजा अमरशक्ति के तीन पुत्र थे, तीनों पुत्र बड़े ही मूर्ख थे।

उनमें राजनीति और नेतृत्व वाले कोई गुण नहीं थे और राजा इस बात से बहुत परेशान था। अपने तीनों पुत्रों को कुशल प्रशासक बनाने के लिए उन्होंने अपने नगर के बहुत सारे पण्डित और आचार्य रखे, लेकिन कोई भी उन्हें सीखा ना सके। फिर राजा ने घोषणा की, कि जो विद्वान उनके तीनों पुत्रों को पढ़ा देगा, उसे बहुत बड़ा इनाम दिया जायेगा।

राजा ने अपने सारे मंत्रीगण से सलाह ली और उन्होंने आचार्य विष्णु शर्मा को अपने बेटों का आचार्य बनाने की सलाह दी, क्योंकि विष्णु शर्मा राजनीति और नीतिशास्त्र सहित सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। राजा इस बात के लिए तैयार हो गया और विष्णु शर्मा को दरबार में बुलवाने का आदेश दिया।

राजा के दरबारियों ने आचार्य विष्णु शर्मा को सम्मान सहित दरबार में लाये और भरी दरबार में राजा ने घोषणा की, कि यदि वे उनके पुत्रों को राजनीति और सारी नीतियों में पारंगत कर देते है, उन्हें एक कुशल राजसी प्रशासक बनाने में सफल हो जाते है तो उन्हें सौ गाँव और बहुत सारा स्वर्ण देंगे।

यह बात सुन कर विष्णु शर्मा हँसें और कहा, “हे राजन मैं अपनी शिक्षा को कभी बेचा नहीं करता, मुझे किसी उपहार या किसी लोभ की कोई लालसा नहीं है। आपने मुझे जिस सम्मान के साथ दरबार में बुलाया, उसके बदले में मैं आपके पुत्रों को छ: महीने के भीतर एक कुशल प्रशासक दूंगा, ऐसा मैं भरी दरबार में शपथ लेता हूँ। अगर मैं अपनी शपथ पूरी नहीं करता हूँ तो मैं अपना नाम बदल दूँगा।”

राजा ने इतना सुनते ही खुशी-खुशी अपने तीनों राजकुमारों को विष्णु शर्मा को सौंप दिये। विष्णु शर्मा जानते थे कि वे उन राजकुमारों को पुराने तरीकों से कभी नहीं पढ़ा सकते। इसलिए उन्होंने कुछ अलग तरीके से पढ़ाने का निर्णय लिया।

वो अलग तरीका था, उन्हें जातक कथाएँ सुनाकर नैतिक शिक्षा देंगे। ऐसी कथाएँ जिसमें सारे पात्र जन्तुओं के इर्द-गिर्द ही रहेंगे और अंतिम में एक शिक्षा मिलेगी, जो पूरे जीवन में काम आएगी।

इस तर्ज पर राजकुमारों को नीति सिखाने के लिए कुछ कहानियों की रचना की, बहुत ही जल्द राजकुमारों को इन कहानियों में रुचि आने लगी और आचार्य अपने संकल्प में सफल होते दिखे। इन कहानियों के जरिये आचार्य ने छ: महीनों में सारे राजकुमारों को कुशल प्रशासक बना कर बता दिया।

इन कहानियों को पाँच समूहों में संकलित किया था, जिसे पंचतन्त्र नाम दिया गया था, जो करीब-करीब 2000 साल पहले बना था।

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पंचतन्त्र का रचनाकाल

बहुत सारे उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस-पास बताई जा रही है। पंचतन्त्र की रचना किस काल में हुई, यह सही से नहीं बताया जा सकता है क्योंकि पंचतन्त्र की मूल प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं है।

कुछ विद्वानों ने पंचतन्त्र के रचयिता एवं पंचतन्त्र की भाषा शैली के आधार पर इसके रचनाकाल के विषय में अपने मत प्रस्तुत किए है।

जैसे महामहोपध्याय पं॰ सदाशिव शास्त्री के अनुसार पंचतन्त्र के रचयिता विष्णु शर्मा थे और विष्णु शर्मा चाणक्य का ही दूसरा नाम है। अत: पंचतन्त्र की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में ही हुई है और इसका रचनाकाल 300 ईसापूर्व मानते है।

लेकिन महामहोपध्याय पं॰ दुर्गाप्रसाद शर्मा ने विष्णु शर्मा का समय आठवीं शताब्दी के मध्य भाग में माना है क्योंकि पंचतन्त्र के प्रथम भाग में आठवीं शताब्दी के दामोदर गुप्त द्वारा रचित कुट्टीनीमत की आर्या देखी जा सकती है।

हर्टेल और डॉ॰ कीथ ने इसे 200 ईसापूर्व के बाद मानने के पक्ष में है।

इस प्रकार पंचतन्त्र का रचनाकाल का विषय कोई भी मत पूर्णतया सर्वसम्मत नहीं है।

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पंचतन्त्र के भाग

पंचतन्त्र संस्कृत नीतिकथाओं में पहला स्थान रखता है।

पंचतन्त्र को पाँच भागों में बाँटा गया है –

मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)

मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)

काकोलुकियम (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)

लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज़ का हाथ से निकल जाना)

अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो, उसे करने से पहले सावधान रहें, हड़बड़ी में कदम न उठाएँ)

पंचतन्त्र की कहानियाँ बहुत जीवंत है, आप पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियों का संग्रह [Panchatantra Stories in Hindi] से पढ़ सकते हैं। इनमें लोकव्यवहार को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। इस पुस्तक की महत्ता इसी से है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुकी है।

अब सारे तन्त्रों को बारी-बारी से समझते है-

मित्रभेद – इस कथा में एक मुख्य कथा होती है, जिसको सत्य साबित करने के लिए बहुत सारी लघुकथाएँ होती है। जैसे इसकी एक अंगी कथा में, एक दुष्ट सियार द्वारा पिंगलक नामक शेर के साथ संजीवक नामक बैल की शत्रुता उत्पन्न कराने का वर्णन है।

जिसे शेर ने आपत्ति से बचाया था और अपने दो मंत्रियों करकट और दमनक के विरोध करने पर भी उसे अपना मित्र बना लिया था।

इस तंत्र में अनेक प्रकार की शिक्षाएँ दी गई है। जैसे कि धीरज रखने से व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति का भी सामना कर सकता है। अत: किस्मत के बिगड़ जाने पर भी धीरज को खोना नहीं चाहिए।

मित्रसंप्राप्ति – इस भाग में मित्र के मिलने से कितना सुख एवं आनंद प्राप्त होता है। वह कपोतराज (कबूतर के राजा) चित्रग्रीव की कथा के माध्यम से बताया गया है। बुरी से बुरी परिस्थिति में एक सच्चा दोस्त ही सहायता करता है।

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इसके साथ यह भी कहा गया है कि मित्र का घर में आना स्वर्ग से भी अधिक सुख देता है। इस भाग में यही उपदेश मिलता है कि हमें उपयोगी मित्र ही बनाने चाहिए। जिस प्रकार कौआ, कछुआ, हिरण और चूहा दोस्ती के बल पर ही सुखी रहे।

काकोलूकीय – इसमें जंग और संधि का वर्णन करते हुये उल्लुओं की गुफाओं को कौवों द्वारा जला देने की कथा कही गयी है। इसमें बताया गया है कि अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए शत्रु को मित्र बना लेना चाहिए और बाद में धोखा देकर उसे खत्म कर देना चाहिए।

इसमें कौआ उल्लू से मित्रता कर लेता है और बाद में उल्लू के किले में आग लगवा देता है। इसलिए शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए।

लब्धप्रणाश – इस भाग में वानर और मगरमच्छ की मुख्य कथा के साथ अनेक कथाएँ भी है, इन कथाओं में बताया गया है कि हाथ लगते-लगते कुछ हाथ ना लगा। इसमें वानर और मगरमच्छ की कथा के माध्यम से शिक्षा दी गई है कि बुद्धिमान अपनी बुद्धि के बल से जीत जाता है और मूर्ख हाथ में आई हुई वस्तु से भी चूक जाता है।

अपरीक्षितकारक – पंचतन्त्र के इस अंतिम भाग में विशेष रूप से विचार पूर्वक हड़बड़ी में काम ना करने की नीति पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है, क्योंकि अच्छी तरह सोच समझ कर लिया गया कार्य अवश्य सफल होता है। उन्हें अपने जीवन में किसी भी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है।

इसमें एक नाई की कथा है, जिसो मणिभद्र नाम के सेठ का अनुकरण कर जैन-सन्यासियों के वध के दोष पर न्यायाधीशों द्वारा मौत की सज़ा सुना दी गयी।

अत: बिना परखे नाई के समान कोई अनुचित कार्य नहीं करना चाहिए। इसमें एक और कथा भी जिसमें यह शिक्षा दी गई है कि पूरी जानकारी ना हो तो वो कार्य कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसके बाद पछताना पड़ता है।

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Filed Under: Historical Persons

Comments

  1. sonu says

    at

    Wonderful post! We are linking to this great article on our site. Keep up the great writing.

    Reply
    • Ravi Kumar says

      at

      Thanks for your appreciation.

      Reply
  2. Shiv singh says

    at

    Thank you so much sir aapane bahut hi acchi jankari di hai

    Reply
  3. Sunita Chauhan says

    at

    आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है, और आप लिखते भी बहुत अच्छा है। मैं गूगल मैं सर्च करके आपके ब्लॉग पर आया फिर मैंने आपका लेख पढ़ा, मुझे बहुत अच्छा लगा। इसके अलावा मैंने और भी कई लेख आपके ब्लॉग के पढ़े है। आप एक अच्छे ब्लॉगर और लेखक है।

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  4. Sneha Joshi says

    at

    Thanks sir, Achi information share ki hai aapne. Bahot sikhne ko mila. Thank you sharing

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  5. dheeraj says

    at

    very useful and informative content in hindi language…keep it up

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  6. Nilesh kumar says

    at

    Dil khush kar diya….

    Good knowledge

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  7. sanjay says

    at

    सर आपको ये पोस्ट बहुत ही शानदार है मुझे समझ नहीं आ रहा में कैसे आपको धन्यवाद करू

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  8. shikha verma says

    at

    बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने

    Reply
  9. Dhaval says

    at

    बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने

    Reply
  10. Abhishek Pandey says

    at

    वाह ! विष्णु शर्मा के बारे में केवल सुना ही था, आज उनके बारे में बहुत कुछ जान गया।

    Reply
  11. Priyanka Tiwari says

    at

    आपके बेवसाईट पर दी गई जानकारी बहुत ही महत्वहपूर्ण एवं उपयोगी हैं

    Reply
  12. munesh says

    at

    भाई, बहुत ही कमाल का पोस्ट लिखा है आपने, आपके समझाने का तरीका भी बहुत ही अच्छा है, आप ऐसे ही लिखते रहिए, धन्यवाद

    Reply

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