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Best 25 Shlok in Sanskrit with Meaning in Hindi [Geeta Karma]

By : Narendra Singh

संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषायों में से एक है। इसे देवों की भाषा की कहा जाता है, इसलिए चाहे भारतीय इसे बोलने में कठिनाई महसूस करते हो, पर इसे दिल में पूजनीय रखते है। पर आपको संस्कृत से प्यार के अलावा अगर बोलना अच्छा लगता है, हम पेश कर रहे है बेस्ट 25 संस्कृत श्लोक, जिन्हें आप आसानी से उच्चारण कर सकते है, तो शुरू करते है-

अनुक्रम

  • Sanskrit Shlok in Hindi
    • Sanskrit Shlok on Karma
    • Shivaji Maharaj Sanskrit Shlok
    • Geeta Shlok in Sanskrit
    • Mahakal Shlok in Sanskrit
    • Guru Sanskrit Shlok
    • Shiv Shlok in Sanskrit
    • Ganesh Shlok in Sanskrit
    • Sanskrit Shlok on Mother
    • Krishna Sanskrit Shlok
    • Shlok in Sanskrit on Vidya
    • Sanskrit Shlok on Father
    • Motivational Sanskrit Shlok
    • Sanskrit Shlok Tattoo

Sanskrit Shlok in Hindisanskrit shlok in hindi

#वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया
लक्ष्मी: दानवती यस्य सफल तस्य जीवित!!!

मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसका आलस्य हैं
परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता
क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुःखी नहीं होता

Sanskrit Shlok on Karma

#पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नम सुभाषित
मूढ़े पाधानखंडेशु रत्न संज्ञा विधीयते!!!

इस धरती पर तीन रत्न हैं जल, अन्न और शुभ वाणी
पर मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा देते हैं!!!

Shivaji Maharaj Sanskrit Shlok

#यानि कानि च मित्राणि कर्तव्यानी शतानि च
पश्य मुशीकमित्रण कपोता: मुक्तबंधना:!!!

छोटे हो या बड़े, निर्बल हो या सबल, अधिक से अधिक संख्या में मित्र बना लेना चाहिये
क्योंकि न जाने किसके द्वारा किस समय कैसा काम निकल जाये!!!

#ददाति प्रतिग्रहनाती मुहयमख्याति पृच्छति
भुङ्क्ते भोजयते चौव शड़ीवध प्रीति लक्षणम!!!

लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना
और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण हैं!!!

Geeta Shlok in Sanskrit

#परान्न च परद्वय तथैव च प्रतिग्रहम्म परस्त्री
परनिंदा च मनसा अपि विवर्जयेता!!!

पराया अन्न, पराया धन, दान, पराई स्त्री और
दूसरे की निंदा इनकी इच्छा मनुष्य को कभी नहीं करनी चाहिये!!!

Mahakal Shlok in Sanskrit

#सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याभ्यासने रक्ष्यते
मराज्यया रक्ष्यते रूप कुल वर्तेंन रक्ष्यते!!!

धर्म की रक्षा सत्य से ज्ञान से अभ्यास से रूप से
स्वच्छता से और परिवार की रक्षा आचरण से होती हैं!!!

Guru Sanskrit Shlok

#अन्ययोपार्जित वित्त दस वर्षाणि तिष्ठति
प्राछे चैकदशवर्ष समूल तद विनश्यति!!!

अन्याय या गलत तरीके से कमाया हुआ धन दश वर्षों तक रहता हैं
लेकिन ग्यारहवें वर्ष वह मूलधन सहित नष्ट हो जाता हैं!!!

#स्वस्तिप्रजाभ्य: परिपालयन्ता न्यायेंन मार्गेन मही महिषा
गोब्रहनेभय: शुभमस्तु नित्य लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु!!!

सभी लोगों की भलाई के लिए कानून और न्याय के साथ शक्तिशाली नेता हो
सभी विकलांगो और विद्वानों के साथ सफलता हो और सारा विश्व सुखी हो!!!

Shiv Shlok in Sanskrit

#प्रियवाक्यप्रदानेन सर्व तुष्यन्ति जन्तवः
तस्मातदेव वक्तव्य वचने का दरिद्रता!!!

यदि अन्य व्यक्तियों से प्रिय लगने वाली भाषा में बातचीत की जाये तो सभी को संतोष प्राप्त होता हैं
इस लिए सदैव मधुर भाषा का व्यवहार करना चाहिये और ऐसा करने में अपनी दरिद्रता क्यों प्रदर्शित की जाय!!!

#दुर्जन: परिहर्तव्यों विद्यालकर्तो सन
मणिना भूषितो सर्प: किमसो न भयंकर!!!

दुष्ट व्यक्ति यदि विद्या से सुशोभित भी हो अर्थात वह विद्यावानभि हो तो
भी उसका परित्याग कर देना चाहिये जैसे मणि से सुशोभित सर्प क्या भयंकर नहीं होता!!!

#दुर्जन स्वस्वभावेन प्रकार्य विनश्यति नोदर
तृप्तिमायाति मूषक: वस्त्र भक्षक:!!!

दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता हैं,
वस्त्रों को काटने वाला चूहा पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता!!!

Ganesh Shlok in Sanskrit

#धर्म-धर्मदर्थ: प्रभवति धर्मात्प्रभावते सुखम
धर्मने लभते सर्व धर्मपरसामीद जगत!!!

धर्म से ही धन, सुख तथा सब कुछ प्राप्त
होता हैं इस संसार मे धर्म ही सार वस्तु हैं!!!

Sanskrit Shlok on Mother

#उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा!!!

कोई भी काम मेहनत से ही पूरा होता हैं बैठे बैठे हवाई किले बनाने से नहीं अर्थात
सिर्फ सोचने भर से नहीं ठीक उसी प्रकार सोते हुए शेर के मुँह में हिरण खुद नहीं चला जाता!!!

#गुरुब्रह्मा गुरूविष्णु: गुरुद्रवों महेश्वर:
गुरु: साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः!!!

गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर हैं
गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, ऐसे सद्गुरु को मेरा प्रणाम!!!

Krishna Sanskrit Shlok

#यो धुर्वांनी परित्यज्य अधुरवानी निषेवतो
धुर्वांनी तस्य नश्यन्ति अधुरवानी नाष्टमेव हि!!!

जो निशिचित को छोड़कर निशिचित का आश्रय लेते हैं
उनका निशिचित ही नष्ट हो जाता हैं और निशिचित तो
लगभग नष्ट के समान हैं ही!!!

#आदाय मांसमखिल स्तनवर्जमंगे माँ मूंच वागुरिक
याहि कुरु प्रसादम अद्यापि शष्पकवलग्रहाणांभिज्ञ
मदतर्मंचञ्चलदृश: शिशवो मदिया!!!

हे शिकारी! तुम मेरे शरीर के प्रत्येक भाग को काटकर अलग कर दो
लेकिन बस मेरे दो स्तनों को छोड़ दो
क्योंकि मेरा छोटा बच्चा जिसनें अभी घास खाना शुरू नहीं किया हैं,
वे बड़ी आकुलता से मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा
अगर मैं उसे दूध नहीं पिलाऊंगी तो वह निश्चित रूप से
मर जायेगा तो कृपया मेरे स्तनों को छोड़ दो!!!

Shlok in Sanskrit on Vidya

#आलस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम
अधनस्य कुतो मित्रम अमित्रस्य कुत: सुखम!!!

आलसी के लिए ज्ञान कहाँ हैं, अज्ञानिमूर्ख के लिए धन कहाँ हैं
गरीब के लिए दोस्त कहाँ होते हैं और दोस्तों के बिना कोई कैसे खुश रह सकता हैं!!!

Sanskrit Shlok on Father

#वनानी दहतो वनहेसखा भवति मारुत: स
एव दीपनाशाय करशे कस्यासित सौहृदम!!!

जब जंगल में आग लग जाती हैं तो हवा उसका मित्र बन जाता हैं
और आग को फैलाने में मदद करने लगता हैं लेकिन वही वायु
एक छोटी सी चिंगारी या लपट को पलक झपकते ही बुझा देती हैं
इसलिए कमजोर व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता!!!

Motivational Sanskrit Shlok

#आप्तकाले तू सम्प्राप्ते यनमित्र मित्रमेव तत
वृद्धिकाले तू सम्प्राप्ते दुर्जनोअपि सुहदभवते!!!

संकट के समय में जो मित्रता निभाता हैं वहीं
वास्तव में मित्र हैं उन्नति के समय में तो शत्रु
भी मित्र बन जाया करते हैं!!!

#विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपाय:!!!

निरंतर अभ्यास से प्राप्त निश्चल और
निर्दोष विवेकज्ञान हानि का उपाय हैं!!!

#क्षणशः कनशशैव विद्यामर्थ च साधयेत
क्षणे नष्ट कुतो विद्या कन्ने नष्ट कुतो धनम!!!

एक एक क्षण गवाएं बिना विद्या ग्रहण करनी चाहिये
और एक एक कण बचाते हुए धन इकट्ठा करना चाहिए
क्षण गवाने वाले को विद्या कहाँ और कण को क्षुद्र समझने वाले को धन कहाँ?

#स्वगृहे पूज्यते मूर्ख: स्वग्रामे पूज्यते प्रभु
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूज्यते!!!

एक मूर्ख की पूजा उसके घर मे होती हैं, एक मुखिया की पूजा उसके गाँव में होती हैं,
राजा की पूजा उसके राज्य में होती हैं और एक विद्वान की पूजा सभी जगह पर होती हैं!!!

#सत्य-सत्यमवेश्वरों लोके सत्य धर्म: सदाश्रित:
सत्यमूलनी सर्वाणि सत्यत्रास्ति पर पदम!!!

सत्य ही संसार में ईश्वर हैं धर्म भी सत्य के ही आश्रित हैं
सत्य ही समस्त भव विभव का मूल हैं सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं हैं!!!

Sanskrit Shlok Tattoo

#षड दोषा पुरुषणह हात्वया भूतिमिच्छता
निद्रा तंद्रा भय क्रोध: आलस्य दीर्घसूत्रता!!!

छ अवगुण व्यक्ति के पतन का कारण बनते हैं
निंद्रा, तन्द्रा, डर, क्रोध, आलस्य और काम टालने की आदत!!!

#यो न हष्यति न द्रष्टि न शोचति न काङ्क्षति
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स में प्रिय!!!

जो न कभी हर्षित होता हैं, न द्वेष करता हैं, न शोक करता हैं, न कामना करता हैं तथा जो शुभ और अशुभ
सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी हैं वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय हैं!!!

यदि आपको संकृत श्लोक पसंद आया हो तो अपने मित्र और रिश्तेदार के साथ जरूर शेयर करे।

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Filed Under: Sanskrit

Comments

  1. Jivani jagat says

    at

    बहुत महत्वपूर्ण जानकारी

    Reply

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